कर्कटेश्वर शिव मंदिर वेपतूर ,जिला तंजावूर (तमिळनाडू) कावेरी नदी के किनारे
कर्कटेश्वर शिव मंदिर कावेरी नदी किनारे तंजावूर जिले के वेपतूर तमिल नाडु |
कुछ मंदिरों में भी जाना हुआ था. दिखाई गई तस्वीरों में से एक हमें अजीब सी
लगी. एक शिव लिंग दिख रहा था और उसके सामने केकड़े जैसी एक
आकृति थी. हमने उससे पूछा कि यह कहाँ की है तो स्पष्ट कुछ बता सकने में असमर्थ रही. केवल इतनी
जानकारी मिली कि कहीं दीवार या खम्बे में बनी
थी. हालाकि तस्वीर कुछ भोंडी सी ही है लेकिन सामने एक चुनौती तो थी ही.
हमने घर में सबसे पूछा कि क्या दिख रहा है. किसी को गणेश की सूंड नज़र आ रही थी तो
किसी को मकड़ी. मुझे एक केकड़ा दिख रहा था. लेकिन समझ में यह नहीं आ रही थी कि
वहां केकड़ा या मकड़ी क्यों बनाई गई होगी.
क्या मकड़ी ने शिव की पूजा की थी और उत्तर में हमें
वह आंध्र में श्रीकालहस्ति पहुंचा दिया.
तब पता चला कि मकड़ी के लिए ही “श्री” प्रयुक्त हुआ है. अब क्योंकि हमें मालूम था कि
भतीजी तो श्रीकालहस्ति गई ही नहीं थी इसलिए दूसरे
विकल्प “केकड़े” का प्रयोग
किया. बडी सुखद अनुभूति रही यह जानकार कि तंजावूर के पास कर्कटेश्वर के नाम से एक शिव मंदिर भी है.
साथ लिए गए और कुछ चित्र भी थे जिनसे मिलान करने पर पुष्टि हो गई. कहानी कुछ इस
प्रकार है:
एक बार ऋषि दुर्वासा तपस्यारत थे. उधर से गुजरते
हुए एक गन्धर्व ने कोई ऐरागैर समझ कर दुर्वासा के बुढापे का बहुत मजाक उड़ाया
परन्तु उन्होंने कोई प्रतिक्रिया प्रकट नहीं की. दुर्वासा की चुप्पी देख गन्धर्व
जोर जोर से ताली बजाने लगा. अपनी तपस्या में व्यवधान से त्रस्त होकर दुर्वासा
कुपित हुए और उस गन्धर्व को श्राप देकर केकड़ा बना दिया. गन्धर्व को अपनी गलती का
जब एहसास हुआ तो दुर्वासा के सामने क्षमा याचना करते हुए गिडगिडाने लगा. श्राप मुक्ति के लिए दुर्वासा
ने केकड़ा बन चुके गन्धर्व को शिव के आराधना की सलाह दी.
कावेरी नदी के उत्तरी किनारे की रेत पर पहले से एक
शिव लिंग विद्यमान था. वहीँ असुरों पर विजय प्राप्ति के लिए इंद्र देव शिव की पूजा
हेतु फूल इकठ्ठा कर रखता. केकड़े के रूप
में गन्धर्व उन फूलों में से एक उठा लाता और
शिव लिंग पर अर्पित करता. इंद्र के फूलों की संख्या 1008 नहीं हो पाती थी. हर रोज एक फूल कम पड़ जाने के रहस्य का इंद्र को भान
हुआ तो गुस्से में आकर केकड़े पर तलवार चला दी. इसके पहले कि केकड़े पर तलवार लग
पाती शिव जी ने अपने लिंग में एक छिद्र बना दिया और केकड़े को छुप जाने के लिए जगह बना दी. तलवार की वार शिव
लिंग पर पड़ गई. शिव जी ने प्रकट होकर इंद्र की उद्दंडता की भर्त्सना की और विनम्र होने की नसीहत भी दी.
कर्कटेश्वर शिव मंदिर कावेरी नदी किनारे तंजावूर जिले के वेपतूर.. |
कहते हैं एक बार एक चोल राजा लकवे से ग्रसित हो
गया. सभी प्रकार का उपचार प्रभावहीन रहा तब राजा ने शिव की आराधना की. एक दिन एक वृद्ध दम्पति उस राजा से मिलने आई और जल में पवित्र भभूत मिलाकर पीने दिया. वह एक चमत्कार
ही था जिससे राजा एकदम ठीक हो गया. राजा ने उस दम्पति को अपने यहाँ राज वैद के रूप
में नियुक्त करना चाहा परन्तु यह प्रस्ताव
स्वीकार नहीं हुआ. इसपर राजा ने उन्हें
स्वर्ण, हीरे, जवाहरात आदि देने
की कोशिश की और दम्पती ने उन्हें भी ठुकरा दिया. अंततः दम्पति ने राजा से नदी
किनारे स्थित शिव लिंग के लिए मंदिर बनाए जाने का आग्रह भर किया. राजाने उन्हें
शिव और पर्वती मानते हुए इनकी इच्छानुसार एक मंदिर का निर्माण करवा दिया.
क्योंकि इस जगह केकड़े रुपी गन्धर्व को भगवान् शिव
ने मोक्ष प्रदान किया था इसलिए यहाँ शिव
जी “कर्कटेश्वर” कहलाये. ऐसा विश्वास किया जाता है कि
यहाँ के शिव लिंग में बने छिद्र में ही केकड़ा छुप गया था और इंद्र
द्वारा तलवार चलाये जाने से बना निशान भी लिंग पर बना हुआ है. इस मंदिर में गणेश,
कार्तिकेय के अतिरिक्त अम्बिका (पार्वती) की दो मूर्तियाँ हैं. पहले बनी मूर्ति गायब हो गई
थी तो दूसरी बनाई गई, फिर पुरानी भी मिल गई, अतः दोनों की प्रतिष्ठा हो गई
थी.
यह मंदिर कावेरी नदी किनारे तंजावूर जिले के वेपतूर
के पास है और सम्बन्दर नामके शिव भक्त
(नायनार) ने अपने तेवारम (काव्य संग्रह) में इस मंदिर का गुणगान
किया हुआ है. लोगों में ऐसा
विश्वास है कि इस मंदिर में जाने से केंसर सहित सभी व्याधियां दूर हो जाती हैं.
अनुरोध :सभी धर्म प्रेमियोँ को मेरा यानि पेपसिह राठौङ
तोगावास कि तरफ से सादर प्रणाम।
आप मेरे से फेसबुक
पर भी जुङ सकते हैं व अपने सुझाव व परामर्श के लिये आपका स्नेही मित्र- पेपसिह राठौङ तोगावास